Thursday, 25 December 2025

अद्वैतवाद: महान तत्वज्ञान!

मेरे जानकारी नुसार अद्वैतवाद के प्रथम प्रतिपाता आद्य शंकराचार्य हैं। ये एक महान तत्वज्ञान है।
अद्वैतवाद कहता हैं ब्रह्म सत्यं, जगं मिथ्या। इसका अर्थ कुछ जन करते हैं कि केवल ब्रह्म सत्य हैं और जग नहीं ही है। परंतु ऐसा नहीं हैं। सच्चा सत्य वहीं जो शाश्वत हैं। मिथ्या का अर्थ है जो सदा के लिए एक जैसा नहीं है, परिवर्तन हो रहा है। कुल मिलाकर हम कह सकते है कि परिवर्तनशील जग में कुछ तो है जो शाश्वत हैं और ये संपूर्ण तर्कसुसंगत बात है, तर्कविहीन नहीं।
परंतु इसका अर्थ ये नहीं कि 'स्वरूपों' में कुछ भेद नहीं। जब तक जग है, स्वरुपोंमे भेद रहेगा ही। और मिथ्या हैं तो भी जग रहेगा ही।
अगर मेरे इस निवेदन से किसी 'सच्चे' सनातनी की भावनाएं आहत होती हैं तो पूर्ण मन-विचार से क्षमा प्रार्थी हूं।
धन्यवाद!

Thursday, 11 December 2025

तिसरी आंख!

पुराणों में वर्णन हैं कि शिव को तीन आंखें हैं। दो खुलीं और एक बंद रहतीं हैं। वो तब ही खुलतीं है जब शिवजी क्रोधित होते हैं। इस पर विधर्मी और तथाकथित अंधश्रद्धा निर्मूलक, सेकुलर हमारा(हिंदू ओ का) मजाक उड़ाते हैं। और अक्सर हमारे पास कोई उत्तर नहीं होता है क्योंकि हम अभ्यास नहीं करते हैं, चिंतन नहीं करते हैं।
पुराणों में जो वर्णन हैं वो आलंकारिक है। हमें समझाते सोपा हो इसलिए! ये तिसरी आंख हमारे पास भी है। परंतु वो दैहिक नहीं है, बौद्धिक है। वो आंख हैं सद्सदविवेकबुद्धि! दो हम में अवश्य होती है परंतु बहुतांश जन उपयोग नहीं करते याने खोलते नहीं। ये आंख जब खुलतीं है तब अज्ञान और मोह को दूर करतीं हैं। याने कि भस्म!
कामदहन क्या हैं!
पुराणों में शिव जी द्वारा कामदेव को जलाने का वर्णन हैं। अति काम वो किसी भी रूप में ही मनुष्यों के जीवन से सुख-शांति, आनंद छीन लेता हैं। कामी मनुष्य का घर अगर चांर कमरों का हों तो वो सोचेगा और दो कमरे हो। छे कमरों का भी हो जाए तो वो वहीं सोचेगा। उसके पास दुचाकी हो तो वो सोचेगा स्वयंचालित हों जाएं। स्वयंचालित हों जाएं तो वो सोचेगा अपनी चतु:चक्री हो जाएं। ऐसे ही काम, वासनाएं बढ़ती ही रहती है। उसे सद्सदविवेकबुद्धि से सिमित करना ही शहाणपण है।

Monday, 1 December 2025

षड्रिपू और आरोग्य

भारतीय तत्वदर्शियोने षड्रिपू(मनुष्य के छे आंतरिक शत्रु) बताएं है। वो है काम(वासनाएं), क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर! ये मानसिक ही नहीं शारीरिक व्याधियां भी उत्पन्न करने है। आज मैं उस विषय में बताने का प्रयास कर रहा हूं।
काम: यद्यपि काम को शत्रु बताया है, इसके बिना कुछ नहीं होता। सिमित हो तो ये भगवान है। परंतु अधिक काम रक्त गति बढ़ाता है, असंतुष्ट बनाता है, क्रोध उत्पन्न करता हैं। ये मन को चंचल भी बनाता है।
क्रोध: ये भी रक्त गति बढ़ाता है।
लोभ: ये पचन क्रिया बिगाड़ता है। कर्करोग(कैंसर) उत्पन्न करता है। मधुमेह उत्पन्न करता है।
मोह: मोह मनकों चंचल बनाता है।
मद: जब काम की पूर्ति होती रहती है तब मद होता है। ये स्वयं ही एक मानसिक व्याधी है।
मत्सर: दुसरो का अच्छा हुआ बुरा लगना ये मत्सर है। ये भी एक मानसिक व्याधी है।
आपके कुछ अच्छे अभिप्राय आये ये 'काम' मुझे है।