अब खून भी सारा चुसेगा क्या रे आदमी!
हवस के लिए तूं सैतान को भी
पीछे छोड़ेगा क्या रे आदमी!
खडी करने इमारतें तूं
कर रहा है वन और अरण्य नष्ट
दे रहा धरती मां को कष्ट
क्यूं समझता नहीं तू!
तुझे भी एक दिन होना हैं नष्ट।
प्यारे हमारे कोंकण को
अगर करेगा नष्ट ।
जीते ही भुगतेगा जहन्नुम से कष्ट
बंद दुवाएं हमारी लेके क्यूं
कर रहा है पुण्यो को नष्ट!
सारे पापों की सज़ा
कभी तो तूं भुगतें गा रे आदमी।
दूध सारा पी लीया धरती मां का
अब खून भी सारा चुसेगा क्या रे आदमी!
मूर्तियों को पूजता है परंतु
भगवान को जानता नहीं।
पत्नी हैं धरती मां उसकी।
ये तू समझता नहीं।।
लोभ में मार कर उसे
कैसे जिएगा तूं आदमी!
दूध सारा पी लीया धरती मां का
अब खून भी सारा चुसेगा क्या रे आदमी!